बदल तो रही हूँ मैं,
पर जाने किस ओर मैं जाने लगी हूँ |
सही गलत का तो नही पता,
पर अब अपनी राह खुद बनाने लगी हूँ ||
छोटी सी बात पे चिढ़ जाती थी जो,
अब बड़ी बड़ी बातें सुनकर भी मुसकाने लगी हूँ |
एक खरोच आने से पूरा घर सर पर उठा लेती थी जो,
अब बड़े बड़े दर्द दिल में समाने लगी हूँ ||
बदल तो रही हूँ मैं,
पर जाने किस ओर मैं जाने लगी हूँ |
छोटी छोटी बात भी माँ को बताने वाली मैं,
अब खुद से राज़ छुपाने लगी हूँ |
हल्के अंधेरे से डरने वाली मैं,
रातों को घर देर से आने लगी हूँ ||
बदल तो रही हूँ मैं,
पर जाने किस ओर मैं जाने लगी हूँ |
बाकी तो नहीं पता,
पर कुछ असर तो तेरे प्यार का भी है |
तभी तो हर वक़्त,
बेवजह मुस्कुराने लगी हूँ ||
बदल तो रही हूँ मैं,
खुद के ख्वाब सजाने लगी हूँ |
परियों के किस्से सुनते सुनते नही थकती थी जो,
अब खुद से कहानियां बनाने लगी हूँ ||
रंग ऐसा चढ़ा है तेरे इश्क़ का,
अब दिवाली में भी होली मनाने लगी हूँ |
बदल तो रही हूँ मैं,
पर जाने किस ओर मैं जाने लगी हूँ |
©कनिका_जोशी
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