चलो आज एक बार फिर खुदसे लड़ती हूँ ,
दोबारा याद ना करूंगी तुझे ये वादा करती हूँ |
पर क्या इतना आसान है भुलाना तुझे??
यही सवाल बार बार मैं खुदसे करती हूँ||
तेरी यादों में खोयी रहती हूँ,
अक्सर अंधेरों में सोयी रहती हूँ|
तेरे जाने के बाद इन अंधेरों से ही गहरा रिस्ता बन गया है मेरा,
तेरे कंधे की जरूरत नही है अब, मैं खुद को गले लगाकर रोया करती हूँ ||
आज एक बार फिर खुदसे लड़ती हूँ,
दोबारा जिक्र ना होगा तेरा, रोज़ खुदसे ये झूठा वादा करती हूँ ||
क्यूँ गया तू मुझसे दूर ??
यही सवाल मैं रोज़ खुदसे करती हूँ||
रोज़ नए नए बहाने बनाकर दिल को समझाती हूँ,
पर क्म्ब्ख़्त ये दिल मानता ही नही,शायद तेरी असलियत ये अभी भी जानता नही |
अब तो इन्ही उलझनों से हर शाम गुज़र जाती है ,
क्यूकी मैं आज भी तुझसे उतनी ही मोहब्बत किया करती हूँ ||
रोज़ खुद से और इस दिल से झूठ बोल बोल कर थक गयी हूँ मैं ,
चल आज एक सच को ब्यान करती हु|
मैं तुझसे प्यार करती थी और आज भी तुझसे ही करती हूँ ||
©कनिका _जोशी
No comments:
Post a Comment